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लेडी डेंटिस्ट की प्यासी जवानी- 1

माय बॉडी वांट सेक्स कहानी में एक दन्त चिकित्सक ने अपनी चढ़ती जवानी से लेकर आगे तक की कहानी लिखी है. इस भाग में तो केवल परिचय आदि ही है.

प्रिय अन्तर्वासना की मेरी प्यारी पाठिकाओ और प्यारे पाठक गण आप सबको मेरा नमस्कार.

प्रस्तुत कहानी मेरी एक प्रशंसिका की आपबीती है जिसे उन्होंने मुझे मेल से अवगत कराया है.
इनकी कहानी जान कर मुझे स्टोरी अच्छी लगी कि ये कोई फूहड़ चुदाई की निम्नस्तरीय कथा न होकर एक सम्मानित डॉक्टर पेशे से सम्बंधित हाउस वाइफ की सच्ची कथा है.

मैं अच्छी इसलिए कह रहा हूं कि ऐसी घटनाएं तमाम लड़कियों और महिलाओं के जीवन में घटती रहती हैं पर वे बहुत कम उजागर हो पाती हैं. इनमें लोकलाज, पहिचान का भय, कोई क्या सोचेगा इत्यादि कारण प्रमुख होते हैं.

यह कहानी पढ़ रहीं कई अन्य महिलायें और लड़कियां होंगी जिनके जीवन में ठीक इस तरह की घटनाएं घटीं होंगी पर उनकी कहानी उनके ही मन में रह गयी होगी कभी दुनियां के सामने नहीं आ सकी होगी.

प्रस्तुत कहानी ‘लेडी डेंटिस्ट की प्यासी जवानी’ मेरी नवीनतम रचना है.
यह कहानी डा. गुंजन की है जिसे मैं अपने शब्द देकर प्रस्तुत कर रहा हूं.
तो मित्रो, कहानी का आनन्द लें और अपने कमेंट्स सदा की तरह नीचे लिखी मेरी मेल आईडी पर लिख भेजें.

इस कहानी की जो जिस्ट या सारांश है वो सिर्फ इतना कि औरत उसी के काबू में रहती है जो उसे तन का भरपूर सुख दे सके. जिसके लंड में दम हो वही पति कहने का अधिकारी है और बीवी भी उसी के अधीन रहना अपना सौभाग्य समझती है; अन्यथा जो आदिकाल से होता आया है वह ही पुनः पुनः होता है.

‘ऑरकुट’ के जमाने में लंड की तारीफ़ में एक कविता बड़ी प्रसिद्ध थी वो याद आ रही है. मन कर रहा है कि उसे मैं यहां लिखूं अतः पहले मैं उसे ही दुहरा देता हूं फिर आगे की कहानी.
यह कविता आज भी तमाम लोगों को स्मरण होगी :

लंड तुम खड़े रहो चूत में पड़े रहो,
लंड तुम प्रचण्ड हो चूत खण्ड खण्ड हो
लंड तुम खड़े चलो लंड तुम भिड़े चलो
सामने दरार हो या गांड का पहाड़ हो
लंड तुम रुको नहीं लंड तुम झुको नहीं
चूत चरमरा उठे झांट कसमसा उठे
तीर सा झपट लपक मार मार तू चूत को
चूत में सरक सरक चूत जाये दरक दरक
जबतक चूत फटे नहीं तब तक लंड हटे नहीं
चूत को तू फाड़ दे उसी के भीतर झाड़ दे
लंड तुम महान हो सर्व शक्तिमान हो!

इस कहानी की नायिका कुमारी गुंजन जो विवाह के बाद डा.(श्रीमती) गुंजन, दंत चिकित्सक बनीं, की आत्मकथा है.

गुंजन जी ने मुझे अपनी यह कथा अत्यंत साधारण शब्दों में सुनाई थी या मेरे मेल पर साझा की थी, जिसमें उन्होंने अपने विगत जीवन के सभी पहलु मुझे विस्तार से बताये थे, शादी से पहले से लेकर आज तक के.

उनके साधारण शब्दों की कहानी को चुदाई कथा का कामुक रूप देने का दायित्व अब मुझ पर है. मेरा प्रयास रहेगा कि मैं अन्तर्वासना की कामुक रसीली कहानियों के पाठक पाठिकाओं की रूचि के अनुसार इसे लिख सकूं ताकि उन सब को भरपूर आनन्द आये साथ ही मेरी नायिका गुंजन जी को भी भरपूर आनन्द और आत्म संतुष्टि प्राप्त हो.

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एक बात और … गुंजन जी के कुछ ऑथेंटिक फोटो मैंने देखे हैं, ये अत्यंत सुन्दर, पुनः कहता हूं ये अत्यंत सुन्दर अट्ठाईस वर्षीय महिला हैं. गोरा उजला रंग जैसे दूध में केसर घोल दी हो, मस्त लम्बा कद, खूब घने लम्बे काले काले रेशमी बाल, इनके तन की प्यास की गवाही देती इनकी मर्म भेदी आँखें, सुराहीदार गर्दन, उन्नत वक्षस्थल, रसीले होंठ, मधुर चित्ताकर्षक मुस्कराहट, भारतीय परिधान साड़ी ब्लाउज और स्वर्ण आभूषणों से आच्छादित इनके जैसा मादक सौन्दर्य बहुत कम देखने में आता है; इतनी अथाह रूपराशि, किसी चढ़ी नदी की तरह हिलोरें लेती इनकी भरपूर पर प्यासी जवानी जो चुदने को सदैव व्याकुल रहती है.

ये किसी से कुछ कह तो नहीं सकतीं पर इनका अंग अंग पुकारता है कि आओ कोई मर्द है? रौंद डालो मुझे रात रात भर, मसल कुचल कर रख दो मुझे; है कोई ऐसा वीर? पर कहीं से कोई सहारा नज़र नहीं आता बस एक गहरा सन्नाटा और शून्य में देखती इनकी आँखें.

पहले डा.गुंजन का परिचय इन्हीं के शब्दों में, फिर आगे की कहानी का आनन्द लीजियेगा.

मित्रो, मैं गुंजन, मेरी उम्र 28 वर्ष होने को है. शुरू से बताती हूं, मेरा जन्म आगरा के पास एक बड़े शहर में हुआ, पढ़ाई लिखाई में मैं हमेशा ही फर्स्ट क्लास फर्स्ट आती रही हूं.

सेक्स की अनुभूति मुझे कम उम्र से ही होने लगी थी. बचपन बीता तो किशोर अवस्था आ गयी.
मेरे पीरियड्स तो बहुत जल्दी शुरू हो चुके थे और मेरी चूत पर रेशमी बाल उससे भी पहले आ चुके थे.

हाई स्कूल करने के दौरान ही मेरे मम्में अचानक से खूब बढ़ गए थे और उनमें मीठा मीठा दर्द सा रहने लगा था; जब कभी मेरा हाथ अपने मम्मों को छू जाता तो मुझे अच्छा सा लगता फिर मैं अक्सर अकेले में अपने हाथों से ही अपने मम्में मसलने लगी और मुझे मज़ा आने लगा था.

हायर सेकेंडरी स्कूल के फाइनल एग्जाम होते होते मेरी चूत में खुजली या सनसनी सी उठने लगी थी.

नहाते समय चूत में साबुन लगाते हुए जब मेरा हाथ मेरी क्लिट से छू जाता तो जैसे मेरे पूरे जिस्म में करेंट सा दौड़ जाता, आनन्द की मस्ती भरी लहर मेरी चूत से उठती और मेरे तन मन पर छा जाती.

धीरे धीरे मुझे अपनी चूत से खेलना अच्छा लगने लगा.

मैं अपना दाना धीरे धीरे सहलाती और चूत की फांकें खोल कर ऊपर से नीचे उंगली फिराती थी जिससे मेरी चूत गीली हो उठती. दस पंद्रह मिनट तक मैं अपनी चूत खूब मसलती रगड़ती.

ऐसे ही करते रहने से मेरे भीतर मस्ती भरा ज्वालामुखी फूट जाता और मैं डिस्चार्ज होने लगती, मेरी चूत से रस की नदी बहने लग जाती जिससे मुझे संतुष्टि मिल जाती और मेरा बदन हल्का फुल्का सा हो जाता.

फिर उम्र बढ़ने के साथ साथ मेरी चूत की सनसनाहट और खुजली भी बढ़ने लगी और मैं लगातार बेचैन रहने लगी.
जी करता कि कोई चीज घुसा लूं चूत के भीतर.

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जैसे जब किसी छोटे बच्चे के दांत निकलते हैं तो उसे बहुत बेचैनी होती, मिसमिसी छूटती है उसके मसूढ़ों में और वो कुछ भी चबा डालना चाहता है, ठीक वैसे ही मुझे लगता था अपनी चूत में!

चूत में जोर से खुजली और मिसमिसी छूटती थी दिल करता था कि बस कुछ भी घुसा लूं अपनी धधकती चूत में … तो चैन आये मुझे.

जब मैं ज्यादा ही बेकाबू हो जाती थी तो अपनी बीच वाली उंगली चूत में घुसा कर अन्दर बाहर कर लेती थी.

फिर समय बीतने के बाद उंगली का मजा कम लगने लगा तो मैं और मोटी चीजें जैसे मोमबत्ती, रोटी बेलने वाला बेलन, कोई छोटी मूली या करेला चूत में लेने लग गयी.
मतलब मैं कुछ भी लैंड जैसी चीज अपनी चूत में घुसा कर सटासट सटासट अन्दर बाहर कर लेती थी जिसके बाद झड़ कर मुझे अत्यंत शान्ति और सुखद महसूस होता था.

एक बात और याद आई, उन दिनों मेरे पास नोकिया का फोन हुआ करता था जिसे मैंने कई बार पतली पॉलिथीन में डाल कर मजबूत धागे से बांध कर, इसका वाइब्रेशन ऑन करके अपनी चूत में घुसा लेती थी और धागे का एक सिरा चूत के बाहर ही रखती थी ताकि इसे खींच कर बाहर निकालने में सहूलियत हो.

फिर मैं घर के दूसरे फोन से चूत में घुसे हुए फोन का नंबर डायल कर देती थी जिससे वो फोन मेरी चूत में वाइब्रेट करते हुए घंटी बजाता था.
क्या गजब की फीलिंग आती थी चूत में! मैं तो एक मिनट से ज्यादा सह ही नहीं पाती थी और झड़ने की कगार पर पहुंच जाती थी. फिर फोन बाहर निकाल कर चूत में उंगली कर कर के झड़ लेती थी.

हाई स्कूल के बाद इन्टर फिर ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने एक प्रतिष्ठित राजधानी मेडिकल कॉलेज से मैंने बी डी एस की उपाधि प्राप्त की है, पर भाग्य का चक्र ऐसा चला कि मैं डॉक्टर का पेशा न कर सकी और एक साधारण सी गृहणी बन कर रह गयी हूं.

घर का सारा काम करना, बच्चे संभालना उन्हें सुबह सवेरे स्कूल के लिए तैयार करना, पति को ऑफिस जाना होता है सुबह 8 बजे सो उन्हें नाश्ता बना कर देना, लंच बॉक्स देना … बस यही सब रह गया है ज़िन्दगी में.

अब मेरे बदन की बात बताऊं तो मेरी हाईट 5.4 है और मम्में 36 हैं हिप्स 34 है, रंग खूब गोरा गुलाबी है, जिस्म भरा हुआ है और अपनी चूत का हाल क्या बताऊं.

इस शेर से समझ लीजिये :

पहले न जाती थी कील चूत में
चुदते चुदते अब तो बन गयी है एक झील चूत में
मेरी चूत जैसे इसमें लहराता हो ताल भोपाल का अखण्ड
दिन रात ये मांगे किसी मर्द का बेहद लम्बा मोटा लण्ड!

प्रिय पाठको, मैं अपनी कहानी को विस्तार से आगे बताऊं इसके पहले मैं थोड़ा सा कुछ और आप सब से शेयर करना चाहूंगी.

मुझे अन्तर्वासना पर सेक्स कहानियां पढ़ने का शौक काफी लम्बे समय से है और इन कहानियों को पढ़ पढ़ कर मैंने खूब मज़ा लिया है.
ये कहानियां पढ़ पढ़ कर मेरी इच्छा भी होने लगी कि मैं मेरी अपनी आप बीती भी कहानी के रूप में अन्तर्वासना पर आये.

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यह सोच कर मैंने लिखने का बहुत प्रयास किया पर कुछ लिखते ही नहीं बना. देर देर तक बैठी सोचती रहती की ये लिखना है वो लिखना है पर लिखा कुछ जाता नहीं था.

फिर समझ आया कि जिसका जो काम है वो वही कर सकता है, सब काम सब के बस का नहीं होता; ऐसे सोचते हुए मेरे मन में विचार आया कि क्यों न मैं अपनी कहानी अन्तर्वासना के किसी लेखक से लिखवाऊं? पर मन में हिचकिचाहट भी थी कि कोई क्यों अपना कीमती समय मेरी कहानी लिखने में खराब करेगा?
फिर सोचा कि चलो किसी से कह के तो देखती हूं कोई लिखने को मान गया तो ठीक वर्ना कोई बात नहीं.

इतना तय करने के बाद मैंने अन्तर्वासना के विभिन्न लेखकों की कहानियां पढ़नी शुरू कीं और मेरा मन इन अरविन्द जी की कहानियों पर अटक गया.

इन अरविन्द जी की कहानियां
मेरा हंसता खेलता सुखी परिवार
कोई मिल गया
आदि आदि तो मुझे लाजवाब लगीं जिन्हें पढ़ते पढ़ते मैं खुद को सोनम की जगह रख कर सोचती कि अरविन्द जी मेरे ससुर रूप में मेरे संग वही सब कर रहे हैं जो कहानी में सोनम बहू रानी के साथ हो रहा है

ऐसे सोचते ही मेरी चूत कामरस से सराबोर हो कर चूने लग जाती थी और मैं इनकी कहानी पढ़ते पढ़ते ही कई कई दफा अपनी चूत में एक साथ तीन तीन उंगलियां घुसा कर या उसको खूब रगड़ मसल मसल कर बार बार डिस्चार्ज हो संतुष्ट हो लेती थी.

तब मुझे लगा कि सिर्फ अरविन्द जी ही मेरी आपबीती को अच्छे से आत्मसात कर न्यायपूर्ण ढंग से अपनी सरस कामुक शैली में लिख सकते हैं.

यही सोच कर मैंने अरविन्द जी की मेल आईडी पर एक मेल भेज दी और उनसे मेलजोल बढ़ाने लगी, मैं उन्हें अपने उत्तेजक और रियल फोटो भेजने लगी और वही सब सेक्स वाली बातें करने लगी.

फिर हम हैंगआउट्स पर मिलने लगे और मैं लगभग रोज ही मैं अरविन्द जी से हैंगआउट्स पर चुदने लगी, उनका लंड चूसने लगी मतलब जो कुछ हम रियल में कर सकते हैं वही सब हम चैट्स पर बातों बातों में करने लगे.

इनसे ऐसी चैट्स करते करते मैं बहुत चुदासी फील करने लगती और फिर मादरजात नंगी होकर अपनी चूत मसलती रगड़ती हुई अपने कामरस की तेज धार छोडती हुई डिस्चार्ज हो जाती.

इससे मुझे अत्यधिक सुकून और आत्मसंतुष्टि मिलती. तो यही सब करते कराते मैं अरविन्द जी से अपनी कहानी लिखने के लिए बार बार कहने लगी.

कहानी जारी रहेगी.
कमेंट्स करके विचार बताएं.

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