ऑनलाइन सेक्स चैट स्टोरी में एक विवाहिता जो अपने पति की चुदाई से खुश नहीं थी, मेरी ऑनलाइन दोस्त बन गयी. हम दोनों सेक्स की बातें करते एक दूसरे की चुदाई बातों में करते.
कहानी के पहले भाग
लेडी डेंटिस्ट की प्यासी जवानी- 1
में आपने परिचय ही पढ़ा था.
अब डा. गुंजन की ऑनलाइन सेक्स चैट स्टोरी लेखक के शब्दों में :
तो मित्रो, जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि मेरी और इन गुंजन जी की बातें पहले ईमेल पर और फिर हैंगआउट्स पर होने लगीं.
अब चूंकि मैं तो अन्तर्वासना पर सेक्स कहानियों का लेखक हूं और ये मोहतरमा भी मेरी कहानियों की प्रशंसिका हैं और इन्होने अपनी सेक्स कथाएं मुझे पहले ही अल्प शब्दों में बता दीं थीं, सो हैंगआउट्स पर हमारी बातचीत का विषय सेक्स पर तो आना ही था सो जल्दी ही हम दोनों चुदाई की बातें करने लगे.
इस तरह हम कई दिनों तक चैट्स करते रहे और ये मुझे अपने विगत जीवन के सेक्स एपिसोड्स की कहानी बना कर अन्तर्वासना पर छपवाने की बात कहने लगीं.
फिर एक दिन मैंने गुंजन जी से इनके फोटो भेजने का बोला कि देखूं तो सही ये मेम साहिबा दिखतीं कैसी हैं. मेरे कहने पर इन्होने अपने कई सारे फोटो एक साथ भेज दिए. इनके फोटो देख कर तो मैं एकदम से किंकर्तव्यमूढ़ रह गया, जैसे मेरे हाथों के तोते उड़ गए और मैं अवाक् इनके फोटो देखता रह गया.
ये गुंजन वही डा. गुंजन निकलीं जो मेरे बगल वाले फ़्लैट नंबर 104 में अपने पति के साथ रहती हैं.
इनके पति पुनीत विश्वकर्मा
के नाम से इनके फ़्लैट के बाहर पीतल की नेम प्लेट लगी है. हे भगवान् ये कैसा संयोग है आखिर?
कुछ समय के लिए तो मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया कि इतनी सुन्दर, इतनी संस्कारशील महिला जो मेरे बिल्कुल बगल में ही रहती है, वो इतने रंगीन मिजाज की हो सकती है भला जो इतने जनों से चुदवाती रही हो?
मैंने सुना था भगवान् संसार में हर किसी के चेहरे का डुप्लीकेट कहीं न कहीं जरूर पैदा करता है कहीं ये वैसा ही केस तो नहीं? या फिर कोई इन गुंजन की कोई जुड़वां बहन हो?
फिर जब ठन्डे दिमाग से सोचना शुरू किया तो मैंने इनके फोटो में इनकी साड़ी ब्लाउज, गहनों पर ध्यान दिया तो पाया कि हां इस वाली साड़ी में मैंने इन्हें एक बार देखा है.
पर दिमाग में शक का कीड़ा तो बैठ ही गया था सो अब अच्छी तरह से कन्फर्म करने का मन करने लगा था.
कहानी आगे कहने से पहले मैं अपने बारे में संक्षेप में बता देता हूं.
मैं यहां एक बैंक में ब्रांच मैनेजर हूं, मेरी उम्र इक्यावन वर्ष है और मैं इस फ़्लैट में अकेला ही रहता हूं.
एक लड़का रख रखा है तो रोज सवेरे एक घंटे के लिए आ जाता है और फ़्लैट की साफ सफाई, झाडू पोंछा, कपड़े बर्तन सारे काम कर देता है.
मेरी पत्नी दूसरे शहर में हमारे पुश्तैनी मकान में रहती है, वहां पास के गाँव में हमारी खेती बाड़ी है जिसकी देखरेख मेरी पत्नी के जिम्मे है और मैं वहां आता जाता बना रहता हूं.
मेरा पड़ोसी पुनीत और उसकी बीवी गुंजन अभी कोई सात आठ महीने पहले ही मेरे बगल वाले फ्लैट में रहने लगे हैं.
इन लोगों के बारे में मुझे कुछ ज्यादा पता नहीं है.
मैं कुछ रिज़र्व टाइप का आदमी हूं सुबह नौ बजे ऑफिस निकल जाता हूं और लौटना भी रात आठ के बाद ही हो पाता है.
तो इस बिल्डिंग में किसी से कोई ज्यादा मेल जोल या किसी के यहां आना जाना नहीं है.
जब ये पुनीत यहां रहने लगा तो एक बार इससे मेरी कुछ बातें शिष्टाचार वश ही हुईं थीं बस.
उसी दिन पुनीत ने मुझे बताया था कि वो एक मल्टी नेशनल कंपनी में इंजीनियर है और इनके दो बेटे हैं, बड़ा वाला छह साल का है जिसे इन्होंने बाहर बोर्डिंग स्कूल में डाल रखा है, छोटा वाला तीन साल का होने वाला है.
पुनीत की बीवी गुंजन से भी मेरी कभी ज्यादा बात चीत नहीं हुई कभी कभार आते जाते हुए सामना हुआ तो गुंजन मुझे नमस्ते अंकल बोल देती हैं बस.
इसके आगे कभी कोई बात नहीं हुई. वैसी गुंजन बहुत सुन्दर महिला है, खूब सलीके से बन संवर कर रहती है और इनका ड्रेसिंग सेन्स और मधुर मुस्कान तारीफ़ के काबिल है.
यह था मेरे पड़ोसी पड़ोसन का परिचय.
तो मैंने उस शाम गुंजन को कन्फर्म करने के इरादे से हैंगआउट्स पर इन से चैट्स करते हुए इनके फोटोज के जवाब में इनकी सुन्दरता की खूब प्रशंसा की और कहा- मैं इन्हें गुलाबी रंग की साड़ी में घर के काम करते हुए देखना चाहता हूं और साथ में हरे कांच की चूड़ियां भी पहन कर दिखाना एवं आप अपना पता भी बताना कि आप कहां रहती हो.
गुंजन ने हां बोल दी और बोलीं कि कल सुबह गुलाबी साड़ी ही पहनूंगी और आपको फोटो भेज दूंगी.
इसके बाद हमने चैट पर चूमा चाटी की और फिर चुदाई करके गुड नाईट बोल कर सो गए.
अगले दिन मैं रोज की तरह तैयार होकर ऑफिस निकल गया फिर ग्यारह बजे से लेकर दो बजे तक गुंजन मुझे गुलाबी साड़ी में हरे कांच की चूड़ियां पहने हुए अपने तरह तरह के फोटो भेजती रही.
मैं भी अपने काम से समय निकाल कर इनके सौन्दर्य के गुणगान करता रहा.
शाम के चार बजे गुंजन ने अपने घर का पता भेजा जो मेरी ही बिल्डिंग का, मेरे बाजू वाले फ़्लैट का एड्रेस था.
जिसे पढ़ कर मेरी बांछें खिल उठीं और लगने लगा कि जल्दी ही गुंजन की उफनती नंगी जवानी मेरे आगोश में होगी.
जैसा कि उसने अपनी कहानी में बताया था वो अपने चूतिया पति से नाखुश थी जो उसे चुदाई में संतुष्ट नहीं कर पाता था और तीन मिनट में ही उसकी लुल्ली जवाब दे जाती थी.
इधर मेरी बीवी भी मेरे साथ नहीं रहती थी तो मुझे लगा कि अब मेरे भी अच्छे दिन आ गए हैं; ऊपर वाले ने मेरे लिए मस्त जवान चूत का इंतजाम कर दिया है और अब मुझे मूठ मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
उस दिन मैं ख़ुशी ख़ुशी जल्दी ही ऑफिस से निकल लिया और छः बजे के करीब अपने फ़्लैट पर जा पहुंचा.
मेरी तकदीर अच्छी थी कि गुंजन मुझे सामने ही किसी पड़ोसन से बात करती दिख गयी.
वही गुलाबी साड़ी उसने पहन रखी थी जिसमें से उसका गोरा रंग रूप किसी खिले गुलाब की तरह लग रहा था, गोरी गोरी कलाइयों में वही हरे कांच की चूड़ियां खनक रहीं थीं.
मैंने नजर भर कर उसे निहारा और अपने फ़्लैट का ताला खोल कर भीतर चला गया.
उस रात गुंजन से फिर मेरी चैट्स हुई और हमेशा की तरह बातें चुदाई तक जा पहुंची तो मैंने उससे कहा- आज तो तेरे नाम की मूठ मारनी है तुझसे बातें करते करते!
तो वो बोली- ठीक है … मैं भी अपनी चूत में उंगली करती हूं साथ में.
उस दिन मूठ मारते टाइम मेरा लंड कुछ ज्यादा ही अकड़ दिखा रहा था.
दीवार के उस तरफ गुंजन अपनी चूत में उंगली करते हुए चूत को रगड़ मसल कर सहला रही थी और मुझसे लिख कर कह रही थी- आ जाओ अंकल जी … मेरी चूत देखो न कितनी गीली हो रही है तुम्हारे लंड के इंतज़ार में … जल्दी आ के चोदो मुझे … आह फाड़ डालो मेरी इस चूत को … बहुत तंग करने लगी है अब ये मुझे!
दीवार के इस पार मैं उसकी चूत मारने का ख्वाब देखता हुआ लंड को स्पीड से मुठिया रहा था और चैट पर लिख रहा था- गुंजन मेरी जान, लो आ गया मैं ये देखो मेरा लंड … ले लो इसे अपनी चूत में!
ऐसा लिख कर मैंने अपने लंड की फोटो खींच कर गुंजन को सेंड कर दी.
इस तरह करीब बीस मिनट ऑनलाइन सेक्स चैट के बाद गुंजन बोली- मैं तो डिस्चार्ज हो चुकी हूं.
इधर मैं भी झड़ चुका था.
हमारी बातें थोड़ी देर और हुईं और गुंजन मेरी फोटो मांगने लगी तो पहले मैंने टालने की कोशिश की क्योंकि मेरी पहचान भी उस पर खुल जाती.
पर जब वो जिद पर अड़ गयी- नहीं अभी दिखाओ अपनी पिक्स आपको मेरी कसम!
तो फिर मजबूर होकर मैंने अपनी कुछ फोटो भेज दीं और साथ ही बता दिया कि मैं तुम्हारा पड़ोसी हूं.
जैसा कि अपेक्षित था वो झट से लॉगआउट कर गयी और मैं आगे का प्लान बनाते बनाते सो गया.
अगले तीन दिनों तक गुंजन ने मुझसे कोई चैट नहीं की और न ही वो मुझे दिखी.
उसकी मनोदशा मैं समझ रहा था.
वो अपनी लव मैरिज के बारे में, अपने नाकारा पति के बारे में और फिर अपने दो यारों के बारे में जिनसे वो लगातार सात आठ साल तक चुदती रही थी, ये सब बातें विस्तार से मुझे बता ही चुकी थी और ये भी बता चुकी थी कि उसका बड़ा बेटा पहले प्रेमी सुरेश की देन है और छोटा वाला दूसरे प्रेमी अरुण की देन है.
और अब वो अपने नाकारा नपुंसक पति से निराश हो कर जैसे तैसे दिन काट रही है.
अब जब मेरे सामने उसकी पहचान उजागर हो चुकी थी और वो जान चुकी थी कि जिसे उसने अपनी सच्ची सेक्स कथा विस्तार से बताई है वो लेखक उसके पड़ोस में ही रहता है और दोनों एक दूसरे को पहचान चुके हैं तो स्वाभाविक ही था कि उसे शर्म तो आनी ही आनी थी, आखिर है तो भारतीय नारी ही न.
ऐसे में अब मुझे ही कोई पहल करनी थी ताकि मैं उसे उसकी इस दुविधा से बाहर निकाल सकूं.
गुंजन ऑनलाइन तो अब आ ही नहीं रही थी तो अब एक ही आप्शन था मेरे पास कि जैसे भी हो उससे बात की जाय.
अब वो तो शर्म के मारे अपने फ़्लैट से भी बाहर नहीं निकल रही थी तो बात हो भी तो कैसे?
बहुत दिमाग खपाने के बाद अचानक मुझे याद आया कि वो सुबह नहाने के बाद आठ बजे के आस पास अपने कपड़े सुखाने रोज छत पर जाती है और उस टाइम छत पर कोई होता भी नहीं है.
इस प्रकार अगली सुबह मैं साढ़े सात बजे ही छत पर जा पहुंचा और पानी की टंकी के पीछे छिप कर बैठ कर गुंजन का इंतज़ार करने लगा.
आठ बज गए … साढ़े आठ हो गए पर वो नहीं आई सो नहीं आई.
मेरे ऑफिस का टाइम भी हो रहा था तो मैं नीचे उतर कर ऑफिस को निकल गया.
ऑफिस के रास्ते में सोचता जा रहा था कि गुंजन छत पर नहीं आई पर उसे अपने गीले कपड़े तो सुखाने ही होते होंगे, इसका मतलब वो मेरे ऑफिस निकलने के बाद छत पर जाती होगी.
हां, मेरे दिल ने गवाही दी कि वो नौ बजे के बाद ही छत पर जाती है.
तो अगले दिन मैंने तय किया कि आज ऑफिस देर से जाना है और जैसे भी हो गुंजन से बात करनी ही है चाहे उसके फ़्लैट में ही जाना पड़े क्योंकि उसका पति पुनीत तो आठ बजे ही घर
से जॉब के लिए निकल लेता है.
इस तरह तय करके मैं सुबह जल्दी ही नहा धो कर तैयार हो गया और नौ बजे के पहले ही छत पर पहुँच कर पानी की टंकी की पीछे खड़ा होकर अपने मोबाइल फोन से यूं ही खेलने लगा.
नौ बजकर बीस मिनट पर गुंजन छत पर आई, वो नहाई धोई बहुत उजली उजली प्यारी सी लग रही थी.
सिर पर गीले बालों का जूड़ा सा बांध रखा था उसने.
छत पर आकर पहले गीले कपड़ों की बाल्टी नीचे रख कर उसने पहले अपने गीले बालों का जूड़ा खोल दिया और बालों को अपने कन्धों पर बिखेर दिया सूखने के लिए फिर मेरी उपस्थिति से अनजान वो अपने कपड़े तार पर डालने लगी.
पहले साड़ी फिर पेटीकोट … फिर ब्रा और पैंटी तार पर डाल कर उसने उन्हें अपने ब्लाउज से ढक दिया.
मेरे मोबाइल का कैमरा ऑन था और मैं गुंजन की एक एक फोटो अपने फोन में कैद करता जा रहा था.
फिर जैसे ही वो नीचे उतरने को मुड़ी मैं दौड़ कर उसके सामने आ गया.
मुझे देखकर उसने शर्म से अपना चेहरा दोनों हाथों में छुपा लिया.
“गुंजन, क्या बात है आजकल तुमसे कोई बात ही नहीं हो पा रही? न तो तुम अब ऑनलाइन आती हो पहले की तरह और न ही दिखाई पड़ती हो कभी?” मैंने प्यार से पूछा.
उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस अपना मुंह हथेलियों से छिपाए, बस सिर नीचा किये खड़ी रह गयी.
“गुंजन, कुछ बोलो न प्लीज, देखो मैं इतने दिनों से तुमसे बात करने के लिए परेशान हूं. चुप मत रहो कुछ तो कहो?” मैंने प्यार से कहा.
“देखो तुम नहीं बात करोगी तो मैं भी यहां से चला जाऊंगा हमेशा के लिए.” मैंने कुछ दुखी होकर कहा.
“अंकल जी, मुझे कोई बात नहीं करनी अब किसी से!” वो अपना मुंह छिपाए ही धीमे से बोली.
“अरे गुंजन बेटा, जो तुम्हारे विगत जीवन में हुआ उसके प्रति अब क्या शर्माना; हर किसी इंसान की कोई न कोई कहानी तो होती ही है; मैं भी तो अपनी बहू सोनम के साथ वही सब कर चुका हूं और जब भी हम मिलते हैं तो फिर से करते हैं, अब इसमें क्या?” मैंने कहना जारी रखा.
“गुंजन बेटा, मैं तुमसे ये सारी बातें विस्तार से करना चाहता हूं. उसके बाद तुम अपना निर्णय उसके बाद लेलेना जो भी लेना हो. मेरी तरफ से कभी कोई दबाव तुम पर नहीं रहेगा. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ देर एकांत में इत्मीनान से इस पर चर्चा कर लें. क्या मैं तुम्हारे फ़्लैट में आ सकता हूं या तुम मेरे फ़्लैट में आ सकती हो?”
“नहीं, कभी नहीं आ सकती. बिल्डिंग का कोई देख लेगा तो मेरा तो जीना मुश्किल हो जाएगा.” वो बोली.
“अच्छा गुंजन, तो फिर एक काम करो, हमारी बिल्डिंग से बाहर निकल कर अगले चौराहे के उस पार वो क्वीन्स मॉल है न उसमें कॉफ़ी हाउस नाम का एक रेस्टोरेंट है. वो अच्छी सेफ जगह है वहां तुम कुछ देर के लिए आ जाओ तो हम इत्मीनान से बैठ कर बात कर सकते हैं. दोपहर बाद चार बजे आ जाना अगर तुम्हें कोई असुविधा न हो तो!” मैंने कहा.
“ठीक है अंकल जी. आ जाऊंगी, आज ही ये भी आज ही चार दिनों के टूर पर गए हैं, पर मैं अभी और कोई प्रॉमिस नहीं कर सकती, आप भी मुझ पर कोई प्रेशर मत डालना किसी भी तरह का!” गुंजन कुछ अनिश्चित स्वर में बोली.
“अरे बेटा, तू मुझे गलत मत समझ मैं कोई ऐसा वैसा इंसान नहीं. तुम्हारी इज्जत और मान सम्मान का मुझे पूरा पूरा ख्याल है.” मैंने उसे आश्वस्त किया.
“ठीक है अंकल जी, अब मुझे जाने दीजिये.” वो बोली तो मैं उसके रास्ते से हट गया और वो जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतरती हुई चली गयी.
इस तरह गुंजन से बात करके मुझे कुछ आशा बंध गयी थी कि इस रूप की रानी की चूत में बहुत जल्दी ही मेरा लंड उछल कूद कर रहा होगा.
कहानी पर कमेंट्स में अपने विचार लिखियेगा.
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